आज भी हम तेरी ही यादों के सहारे जी रहें है,
अपनी बिछड़न के जहरीले पलों के घूंट पी रहें हैं।
उन यादों का ही तकिया लेके सो जाते हैं हम,
सोने के बजाय बस ख़यालो में खो जाते है हम।
तुम जुदा हो गई इसका दुख तो है ही,
बस, जिस तरह से जुदा हुई उसका कांटा चुभता है हमें।
नींद ना तुम्हे आती है और ना हमें आती है,
नसीब की कटपुतलिया है हम,
बस वो जैसे चाहे वैसे नचाती है।
भगवान से दुआ करते है रोजाना,
इस जनम नहीं सही,
अगले जनम तो हमे मिलाना।
– शब्दार्थजीवन
